Kaifi Azmi wrote a poem in the memory of Babri Masjid demolition. It was called Doosra Banwas.
Kaifi Azmi wrote a poem in the memory of Babri Masjid demolition. It was called Doosra Banwas.
कैफ़ी आज़मी साहब को उनकी १७वी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि।
राम बनवास से जब लौट के घर में आये,
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
रक्स से दीवानगी आँगन में जो देखा होगा
६ दिसंबर को श्री राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर में आये ?
जगमगाते थे जहाँ राम के क़दमों के निशां
प्यार की कहकशां लेती थी अंगडाई जहाँ
मोड़ नफरत के उसी राहगुज़र में आये
धर्म क्या उनका था? क्या ज़ात थी? यह जानता कौन?
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन?
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी थे मेरे दोस्त तुम्हारे खंजर
तुमने बाबर की तरफ फेकें थे सारे पत्थर,
है मेरे सर की खता, जख्म जो सर में आये
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
के नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे,
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम यह कहते हुए आपने द्वारे से उठे
राजधानी की फिजा आई नहीं रास मुझे,
६ दिसंबर को मिला दूसरा बनवास मुझे.